
छुरा गरियाबंद भूपेंद्र गोस्वामी आपकी आवाज संपर्क सूत्र=8815207296
छुरा-आईएसबीएम विश्वविद्यालय नवापारा (कोसमी) छुरा,गरियाबंद छत्तीसगढ़ में विधि विभाग द्वारा ” घरेलू हिंसा: कानूनी मुद्दे और निवारण के उपाय” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन का शुभारंभ मां सरस्वती को दीपप्रजज्वली कर किया गया। कु. बिंदु साहू एवं राजकुमारी राणा द्वारा सरस्वती वंदना एवं राजकीय गीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम संयोजक डॉ. समीम अहमद खान विभागाध्यक्ष विधि विभाग ने स्वागत भाषण देते हैं, सम्मेलन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि, लोगों को बताना कि शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा, अपहानि या जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंग दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. भी पी भोल ने कहा कि क़ानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है, या मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा है। संयुक्त कुलसचिव डॉ रानी झा ने बताया कि घरेलू हिंसा विपरीत लिंगी अथवा समलैंगिक संबंधों में भी हो सकती है। घरेलू हिंसा के शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक और यौन शोषण सहित विभिन्न रूप हो सकते हैं, जिसमें धूर्तता से लेकर विवाह पश्चात बलात यौन सम्बन्ध और हिंसक शारीरिक शोषण भी शामिल हैं एवं इसके परिणामस्वरूप मानसिक अथवा शारीरिक विरूपण अथवा मौत भी संभव है। विषय विशेषज्ञ डॉ. सैय्यद कलिम अख्तर श्री वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी अमरोहा उत्तर प्रदेश ने अपने उदबोधन में कहा कि वैश्विक रूप से सामान्यतः पत्नी अथवा महिला साथी घरेलू हिंसा की शिकार अधिक होती है हालांकि इसका शिकार पुरुष साथी अथवा दोनों एक दूसरे के खिलाफ घरेलू हिंसा का शिकार हो सकते हैं अथवा दोषी आत्मरक्षा या प्रतिशोध के कारण भी घरेलू हिंसा का शिकार हो सकता है। जबकि विकसित विश्व में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को प्राधिकारियों के पास खुले आम शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, यह तर्क दिया जाता है कि पुरुषों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को प्रतिवेदित नहीं किया जाता क्योंकि इससे उन्हें सामाजिक रूप से कायर और पुरुषत्वहीन माना जाता है। प्रमुख वक्ता डॉ. शिवकांत प्रजापति मैट्स यूनिवर्सिटी रायपुर छत्तीसगढ़ ने अपने उदबोधन में कहा कि पारिवारिक हिंसा व्यवहार का तरीका है जो शारीरिक रूप से, यौन, भावनात्मक रूप से या मनोवैज्ञानिक रूप से अपमानजनक है। यह नियंत्रित करने, हावी होने या किसी व्यक्ति को डराने या भयभीत करने का तरीका है। लगाना; तथा बच्चों के सामने पारिवारिक हिंसा । अन्य वक्ता प्रो. त्रिप्ति चंद्राकर, शासकीय जे योगानंदम स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ ने अपने विचार रखते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार, हिंसा “स्वयं के विरुद्ध, किसी अन्य व्यक्ति या किसी समूह या समुदाय के विरुद्ध शारीरिक बल या शक्ति का साभिप्राय उपयोग है, चाहे धमकीस्वरूप या वास्तविक, जिसका परिणाम या उच्च संभावना है कि जिसका परिणाम चोट, मृत्यु, मनोवैज्ञानिक नुकसान, दुर्बलता, या कुविकास के रूप में होता हैं । कार्यक्रम का सफल संचालन राष्ट्रीय सम्मेलन के समन्वयक डॉ. भूपेंद्र कुमार साहू ने किया तथा आयोजक सचिव राजेंद्र गेंद्रे सफल आयोजन हेतु विश्वविद्यालय के अधिकारीयों, कर्मचारियों तथा वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया । शोध संगोष्ठी में शोधार्थी केशर लता साहू, पुरुषोत्तम साहू, जीतेंद्र कुमार साहू एवं भूमति दुर्गा अपने शोध पत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं कुलपति तथा अकादमिक अधिष्ठाता ने शुभकामनाएं दीं।
